Saturday, July 7, 2012

क्या नाम दे इन बच्चों को................?


क्या नाम दे इन बच्चों को................?
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यह सवाल अपने आप में हमेशा से और चारों तरफ से प्रश्नवाचकों से घिरा हुआ है। जिस पर तमाम तरह के सवालिया निशान सदियों से लगाये जाते रहे हैं और लगाये भी जा रहे हैं। इन निशानों से उपजे दागों का कहीं कोई माई बाप नहीं, जो इनको साफ करे। यह तो बस समाज की देन है, जो हमेशा दूसरों पर थोपने का काम करती है। जिसकी चुभन से कहीं कोई भी अछूता नहीं रह पाता। अपनी पूरी जिंदगी में कभी-न-कभी कुछ-न-कुछ तो झेलना ही पड़ता है। हालांकि इस समाज में चलता है सब कुछ इन समाज के रहनुमाओं द्वारा, और सामाजिक पृष्ठभूमि को अपनी ढाल बनाकर, अपना उल्लू सिद्ध किया जाता है। वैसे बहुत-से हितैसियों ने मंत्रों और भिन्न-भिन्न तरह के आडंवरों से न जाने कितने उल्लू सिद्ध किये हैं, फिर इस उल्लू सिद्धि में किसी बेगुनाह की बलि ही क्यों न चढ़ौत्री के रूप में चढ़ानी पड़े, बेझिझक चढ़ा दी जाती है। जिसे लोग अपनी नियति मानकर स्वीकार कर लेते हैं। इसके अलावा इनके पास दूसरा रास्ता नहीं छोड़ा जाता, जिसे वह अपना सकें।
शायद मुझे अपनी बात घुमा-फिरा कर नहीं कहनी चाहिए थी। बरहाल में अपने मूल मुद्दे यानि बच्चे? जिसे समाज क्या नाम दे, उस पर बात कर रहा हूं। यह वे बच्चे हैं जो आम बच्चों की परिधि में सम्मलित नहीं किए जाते। यहां तक की समाज, हां पूरा समाज भी इन्हें स्वीकार नहीं करता। इन बच्चों पर तरह-तरह के प्रश्नवाचक शब्द थोप दिये जाते हैं और छोड़ दिया जाता है मरने के लिए। हां यह बात सही है कि कुछ बच्चों की किस्मत अच्छी होती है जो पैदा होते ही इस तिरस्कृत समाज के कोप भंजन का शिकार होने से पहले ही इस समाज से रूकसत हो जाते हैं। और वो भी बच्चे जो पैदा होने से पहले ही गर्भ में मार दिये जाते हैं जिन्हें फेंक दिया जाता है किसी गंदगी में, कुत्ते और बिल्लियों का निवाला बनने के लिए। किस्मत है समाज के तिरस्कार से तो बच गये। वहीं रह जाते हैं वो बच्चे जिन्हें भगवान भी स्वीकार नहीं करता। जीना पड़ता है इसी समाज में, पल-पल मरने के लिए। और इनके साथ-साथ ताउम्र चलते हैं बहुत सारे सामाजिक सवालों के मकड़जाल। जिनसे वो कभी मुक्त नहीं हो पाता।
इस कड़ी को और आगे बढ़ाते हुए महाभारत काल में चलते हैं। जिसमें बिन ब्याही कुंआरी कुंती अपने पुत्र कर्ण को पैदा होने के बाद नदी में बहा देती है। ऐसा ही बहुत सारी कुंआरी कन्यायें, लोकापवाद के कारण अपने पुत्र को नदी में, कुएं में, जंगल में फेंक आती हैं। हांलाकि बिन विवाह के कुंआरी कन्याओं से पैदा हुए पुत्र को शास्त्र कामीन कह कर संबोधित करता है। वहीं समाज इसे नजायज करार देता है। जो अपने आप में एक गाली है। चलिये महाभारत काल की कुंती और कर्ण को यही पर छोड़ देते हैं और बात करते हैं आज के सूचना संजाल के दौर की। जहां इन बच्चों की संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है। इसका मूल आज भी अंधेरे में, किसी सात पेहरों में अब भी कैद है। परंतु इसकी परिणति से रिस्ता हुआ अम्ल, समाज में अपना हिस्सा सुनिश्चित कर चुका है।
इस आलोच्य में बात करें कि, इन बच्चों के समाज में पैदा होने के वो कौन से मूलभूत कारण हैं तो परिस्थिति हमें हकीकत के कुछ अनछुए पहलुओं से खुद-ब-खुद रूबरू करा देगी। वैसे इन बच्चों के पैदा होने में समाज का एक विशाल वर्ग आम तौर पर महिलाओं को ही कठघरे में खड़ा करके, तमाम तरह के लानछनों से नवाजता है। और उस पुरूष को छोड़ देता है जिसका इसमें बराबर का हिस्सा होता है या उससे भी कहीं ज्यादा।
अगर क्रमवार विश्लेषण करें तो पहले प्यार ही हमारे सामने परिलक्षित होता है। जिसमें लड़का-लड़की समाज से परे होकर प्यार को परवान चढ़ते हैं और फिर प्यार के नाम का सहारा लेकर अपनी शारीरिक कामवासना की पूर्ति करते हैं। इसी कामवासना से जन्म होता है इन बच्चों का। दूसरा कारण देखें तो हमारी अंतरआत्मा दहल जाती है। क्योंकि इसमें पूर्णरूप से पुरूष का ही हाथ होता है जो अपनी कामपिपास को शांत करने या सदियों से चली आ रही आपसी रंजिश के चलते इन महिलाओं को अपनी हवस का शिकार बना लेते हैं और छोड़ देते हैं उपजने के लिए बे नाम संतानों को। जो कभी नदी में, कभी नाले में, कभी झांड़ियों में  तो कभी कचडे़ के डिब्बे में मिल जाते हैं असहाय, बेसहारा। कुछ की सांस चल रही होती है तो कुछ की थम चुकी होती है और कुछ की चलने ही नहीं दी जाती। मार दिया जाता है आधे में ही। यह सब सोच के भी रूह काम उठती है। क्या जिंदगी है इनकी।
इतना सब लिखने के बाद भी सवाल उसी प्रश्नवाचकों के निशाने पर खड़ा हुआ है। कि क्या नाम दे इन बच्चों को। क्या गलती है इनकी जो इनको समाज स्वीकार नहीं करता। होती तो आखिर इंसान की औलाद है। जिस पर जानवरों से बदतर सलूक किया जाता है और वो सजा दी जाती है जो उसने कभी नहीं की। हां जुर्म तो किया है इस दावनी समाज में बिन विवाह के पैदा होने का।
माना कि हमारा समाज विवाह से पहले उत्पन्न संतानों को स्वीकृति प्रदान नहीं देता, परंतु इसमें इन बच्चों का क्या दोष। जिसको हमारा समाज तिरस्कार करता रहता है। और रख दिया जाता है नाम कमीना, नजायज। वैसे इन नामों से उन लड़के-लड़कियों को संबोधित करना चाहिए जो प्यार के नाम पर सब कुछ करते हैं और अपने दामन को पाक साफ दिखाने के लिए फेंक देते हैं इन बच्चों को किसी गंदगी में मारने के लिए।
लाई हयात आये, कजा ले चली चले
अपनी खुशी न आये, न अपनी खुशी चले!
मैं इसका निष्कर्ष निकाले में अपने आप को असमर्थ महसूस कर रहा हूं और कुछ पंक्तियों के साथ इसे यहीं पर खत्म करता हूं-
प्यार के नाम पे, लुटा दिया सब कुछ
दामन पाक दिखाना है तो कर्ण को बहाना पड़ेगा!


Monday, June 18, 2012

वेश्यावृत्ति और कानून


वेश्यावृत्ति और कानून



वेश्यावृत्ति सभी सभ्य देशों में आदिकाल से विद्यमान रही है। और ‘‘सदैव सामाजिक यथार्थ के रूप में स्वीकार की गई तथा इसका नियमन विधि एवं परंपरा द्वारा होता रहा है। आधुनिक यांत्रिक समाज में हमारी विवश्तामानसिक विक्षेप एवं निरंतर बढ़ती हुई आंतरिक कुंठा के क्षणिक उपचार का द्योतक है।’’1 वस्तुतः वेश्यावृत्ति विघटनशील समाज के सहज अंग के रूप में विद्यमान रही है। सामाजिक स्थिति में आरोह-अवरोह आते रहेकिंतु इसके अस्तित्व को बिलकुल भी प्रभावित नही कर सके। अगर कहा जाए तो वेश्यावृत्ति जैसी विवादास्पदउलझी हुई और मिथकीयअन्य कोई सामाजिक परिघटना नहीं है। वैसे ‘‘वेश्या’ शब्द को अंग्रेजी में प्रोस्टीट्यूट’ कहा जाता हैजो लेटिन शब्द प्रोस्टीबुला’ अथवा प्रोसिडा’ से बना है।2 भारत में इन्हें गणिका’ के नाम से पुकारा जाता था एवं प्राचीन भारतीय साहित्य में इसका विस्तृत वर्णन मौजूद है।
वेश्यावृत्ति क्या हैइस संबंध में विचारों में अस्पष्टता झलकती हैइसलिए पहले वेश्यावृत्ति की परिभाषा जान लेना अति आवश्यक है कि वेश्यावृत्ति वास्तव में है क्यावैसे ‘‘यौन संबंधी यथेच्छाचार या एकाधिक पुरूष से संबंध रखना वेश्यावृत्ति नहीं है। यदि कोई स्त्री चाहे वह सधवा होविधवा हो या कुमारी-किसी पुरूष से कथित रूप से असामाजिक संबंध रखती हैतो वह उतने से वेश्या नहीं कहला सकती।’’3 वेश्या कहलाने के लिए यह आवश्यक है कि इस प्रकार का संबंध हो और यह संबंध पैसा या लाभ के एवज में स्थापित किया गया हो। यदि यह अंतिम शर्त पूरी नहीं होतीतो स्त्री चाहे रोज एक नए पुरूष को रखेंवह भले ही विकृत मस्तिष्क कही जाएपरंतु वेश्या नहीं कहला सकती। इसके विपरीत यदि किसी स्त्री का संबंध दस-बीस साल तकयहां तक कि जन्म भर एक ही पुरूष से रहता हैपर वह संबंध पैसे से जुड़ा हो तो वह एकवृत्तिवाली होते हुए भी वेश्या ही कहलाएगी।
इनसाइक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटानिका के अनुसार वेश्यावृत्ति वह है जो पैसे या अन्य मूल्यवान सामग्री के तात्कालिक भुगतान के बदलेपरिचित या अपरिचित किसी ऐसे व्यक्ति के साथ यौनाचार करे।4 वेश्यावृत्ति निवारण कानून 1956 मेंवेश्यावृत्ति की परिभाषा है- किसी महिला द्वारा किराया लेकरचाहे वह पैसे के रूप में लिया गया हो या मूल्यवान वस्तु के रूप में और चाहे फौरन वसूला गया हो या किसी अवधि के बादस्वछंद यौन-संबंध के लिए किसी पुरूष को अपना शरीर सौंपना वेश्यावृत्ति’ है और ऐसा करने वाली महिला को वेश्या’ कहा जाएगा।
अन्य शब्दों के माध्यम से कहा जाए तो अर्थलाभ के लिए स्थापित संकर यौनसंबंध वेश्यावृत्ति कहलाता है। इसमें उस भावनात्मक तत्व का अभाव होता है जो अधिकांश यौन संबंधों का एक प्रमुख अंग है। विधान एवं परंपरा के अनुसार वेश्यावृत्ति उपस्त्री सहवासपरस्त्रीगमन एवं अन्य अनियमित वासनापूर्ण संबंधों से भिन्न होती है।5 संस्कृत कोशों में यह वृत्ति अपनाने वाले स्त्रियों के लिए विभिन्न संज्ञाएं दी गई हैं। जैसे-वेश्यारूपाजीवापण्यस्त्रीगणिकावारवधुलोकांगनानर्तकी आदि।
वेश्यावृत्ति के अस्तित्व के संबंध में देखा जाए तो कम-से-कम 18 हजार वर्ष पहले ही वेश्याप्रथा का अस्तित्व ज्ञात होता हैपरंतु आर्थिक युग के विकास के साथ-साथ वेश्याओं की अवस्था में भी परिवर्तन हुआ है।6 ज्यों-ज्यों नागरिक स्वतंत्रता बढ़ी हैत्यों-त्यों वेश्याओं की स्वतंत्रता भी बढ़ी है। इसके सापेक्ष समाजवादी युग का विकास हुआ और साम्राज्यवादी युग के विकास के साथ ही नारी को भोग-विलास के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा। नारी को विलासिता की वस्तु मानकर और कामुकता की कठपुतली समझकर अपनी अंगुलियों से जब जैसे चाहा नचायारस निचोड़ा और झूठन व थुकन समझकर फेंक दिया।7
विश्व के हर देशहर काल में ऐसा ही होता रहा। सामाजिक क्रूरता व विषमता का ग्रास बनी नारी को सामंती लोगों ने शोषण का शिकार बनाया। कमनीय नारी को समाज में भूखे सामंतीविलासी भेड़ियों से बचाने के लिये उनके माता-पिताओं ने नारी को भगवान की दासीपुत्रीसेविका का नाम देकर भगवान के शरण में भेज दियाजहां उसे अप्सरा’, ‘परी’ नाम देकर भगवान भोग्या घोषित कर दियाताकि वहां उसका यौवनरूपलावण्यसौंदर्य सुरक्षित रहेउसे सम्मान मिलेकिंतु वहां पर विराजमान भगवान के ठेकेदारों ने नारी को अश्लीलता व नग्नता की वस्तु बना दिया। और इसे अनुष्ठान का नाम देकर नारी की कामुकता को भोग का विषय बनाया तथा भगवान की दास बनाकर भगवान की मूर्ति के सामने नचवाया और फिर उसी पवित्रता को देह व्यापार का संयोग व संवाद बनाकर समाज के सामने पेश कर दिया।8 ज्यों-ज्यों समाज विकास के मार्ग पर अग्रसरित हुआ त्यों-त्यों वेश्यावृत्ति में परिवर्तन होता गया। और ‘‘यह वृत्ति अन्य उद्योगों की तरह देह-व्यापार (कर्मिशियल सेक्स) भी एक उद्योग के रूप में सामने आता गया।’’9 जहां ऐसे लोगों की भरमार दिखाई देती है जो इसको खरीदने के इच्छुक होते हैं। यह बात सही है कि अन्य उद्योगों की भांति यह उद्योग कभी भी खरीददारों की कमी की शिकायत नहीं करता।
हालांकि खरीददारों की नियमित भोग और कामुकता को शांत करने के कारण यह उन समाजों में ज्यादा से ज्यादा रही जहां विकास और भूमंडलीय प्रक्रिया ने गरीबों को अपनी परिधि से बाहर कर दिया। सेक्स बेचना या सेक्स के लिए बिकना ऐसा कार्य है जिसमें गरीब तथा अनपढ़ भी आसानी से प्रवेश कर सकते हैं। किशोरावस्था तथा दैहिक आकर्षण ही इसकी एकमात्र अनिवार्य योग्यता है। वेश्यावृत्ति एक ऐसा धंधा है जो लगातार सुनिश्चित करता है कि गरीब औरतेंसिर्फ कुछ सौभाग्यशालियों को छोड़करसदैव गरीब तथा अनपढ़ रहेंगी।10 फिर भी जीवन निर्वाह के रक्षात्मक साधनों और अस्तित्व बनाएं रखने के लिए एशिया के अनेक भागों में वेश्यावृत्ति तेजी से पनप रही है।
एक अनुमान के अनुसार ‘‘इस वक्त बंबई महानगरी में ही लगभग 50 हजार वेश्यालय हैंजिनमें एक लाख से ऊपर वेश्याएं धंधा कर रही हैं।’’11 वहीं मानवाधिकार आयोग के अनुसार, ‘‘भारत में लगभग 15 लाख वेश्याएं हैं। जबकि 1 लाख से अधिक वेश्याएं मुंबईएशिया में वेश्यावृत्ति को अंजाम देती हैं।’’12 जो आज सबसे बड़ा सेक्स उद्योग बन गया है। उत्तर प्रदेश के जिलों में किए गए एक अध्ययन से पता चलता है ‘‘कि 1,341 यौनकर्मीवेश्यालय आधारित वेश्यावृत्ति के एक नमूने में 693 और परिवार आधारित वेश्यावृत्ति में 584 वेश्याएं लिप्त थी। वैसे लड़कियां मुख्य रूप में निम्न मध्यम आय वालें क्षेत्रों की होती हैं।’’13
इसके व्यापार की बात करें तो ‘‘देश में रोजाना 2000 लाख रूपए का देह व्यापर होता है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के एक अध्ययन के मुताबिक भारत में 68 प्रतिशत लड़कियों को रोजगार के झांसे में फंसाकर वेश्यालयों तक पहुंचाया जाता है। 17 प्रतिशत शादी के वायदे में फंसकर आती हैं। वेश्यावृत्ति में लगी लड़कियों और महिलाओं की तादाद 30 लाख है।’’14 भारत में वेश्यावृत्ति के बाजार को देखते हुए अनेक देशों की युवतियां वेश्यावृत्ति के जरिए कमाई करने के लिए भारत की ओर रूख कर रही हैं। ऐसे भी मामले देखने में आए हैं जिसमें झारखण्डउत्तर प्रदेशराजस्थान और उत्तरांचल में 12 से 15 वर्ष की कम उम्र की लड़कियों को भी वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है। पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से सटा दक्षिण 24 परगना जिले के मधुसूदन गांव में तो वेश्यावृत्ति को जिंदगी का हिस्सा माना जाता है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि वहां के लोग इसे कोई बदनामी नहीं मानते। उनके अनुसार यह सब उनकी जीवनशैली का हिस्सा है और उन्हें इस पर कोई शर्मिन्दगी नहीं है। इस पूरे गावं की अर्थव्यवस्था इसी धंधें पर टिकी है।
‘‘भारत में सेक्स वकर्स की संख्या करीब 28 लाख है। इनमें करीब 43 फीसदी महिलाएं ऐसी हैं जो उस उम्र में ही इस धंधे में धकेल दी गईं जब उनकी उम्र अठारह बरस भी नहीं थी। भारत में 15 से 35 साल तक की महिलाओं की गिनती की जाए तो उनमें से 2.4 फीसदी महिलाएं सेक्स वर्कर हैं।’’15 इनमें सबसे ज्यादा महिलाएं मध्य प्रदेश और बिहार से हैं। इसके बाद राजस्थान और उत्तर प्रदेश का नंबर आता है।
वैसे वेश्यावृत्ति करने वाली स्त्रियों में से यदि हम आज उनमें से एक-एक के जीवन का अनुशीलन करेंतो पाएंगे कि उनमें से अधिकांश के जीवन में ये सब सोपान एक के बाद एक घटित होते हैं। चकले में बैठने वाली अधिकांश स्त्रियों के जीवन के अनुशीलन से यह ज्ञात होता है कि ‘‘पहले कोई स्त्री किसी-न-किसी बुरी सोहबत में पड़कर या किसी मिथ्या प्रेमिक के जाल में फंसकरया किसी अन्य प्रकार से वेश्यावृत्ति में कदम रखती हैतो पहले-पहल वह केवल एक यौथ स्त्री (ऐतिहासिक अर्थ में नहीं) हो जाती हैऔर उसकी कमाई पर उसके कथित मालिक या चकले की मालकिन का अधिकार होता है।’’16 इसके बाद जब वह कुछ समझने लगती है और या तो उसके आने-जाने वालों में उसके एकाध सहायक पैदा हो जाते हैं या मालकिन समझती है कि उसे पूर्ण रूप से दबाकर नहीं रखा जा सकता तो वह उसे कुछ हिस्सा देने लगती है। इसके बाद का सोपान वेश्या के लिए पूर्ण स्वतंत्र’ रूप का सोपान हैजब वह खुद कमरा लेकर या मकान लेकर अलग स्वतंत्र’ रूप से बाजार में अपना रूप-यौवन बेचने लगती हैं।
वेश्यावृत्ति को अपनाने के मूलभूत कारण सामने आएं हैं जिन कारण से ये स्त्रियां वेश्यावृत्ति का रास्त चुन लेती हैंयथा-
आर्थिक कारण
अनेक स्त्रियां अपनी एवं आश्रितों की भूख की ज्वाला शांत करने के लिए विवश हो इस वृत्ति को अपनाती हैं। जीविकोपार्जन के अन्य साधनों के अभाव तथा अन्य कार्यों के अत्यंत श्रम साध्य एवं अल्वैतनिक होने के कारण वेश्यावृत्ति की ओर आकर्षित होती है। धनीवर्ग द्वारा प्रस्तुत विलासिताआत्मनिरति तथा छिछोरेपन के अन्यान्य उदाहरण भी प्रोत्साहन के कारण बनते हैं। एक अध्ययन के अनुसान लगभग 65 प्रतिशत वेश्याएं आर्थिक कारणवश इस वृत्ति को अपनाती हैं।
सामाजिक कारण
समाज ने अपनी मान्यताओंरूढ़ियों और त्रुटिपूर्ण नीतियों द्वारा इस समस्या को और जटिल बना दिया है। विवाह संस्कार के कठोर नियमदहेज प्रथाविधवा विवाह पर प्रतिबंधसामान्य चारित्रिक भूल के लिए सामाजिक बहिष्कारअनमेल विवाहतलाक प्रथा का अभाव आदि अनके कारण इस घृणित वृत्ति को अपनाने में सहायक होते हैं। इस वृत्ति को त्यागने के पश्चात् अन्य कोई विकल्प नहीं होता। ऐसी स्त्रियों के लिए समाज के द्वारा सर्वदा के लिए बंद हो जाते हैं। वेश्याओं की कन्याएं समाज द्वारा सर्वथा त्याज्य होने के कारण अपनी मां की ही वृत्ति अपनाने के लिए बाध्य होती हैं। समाज में स्त्रियों की संख्या पुरूषों की अपेक्षा अधिक होने तथा शारीरिकसामाजिक एवं आर्थिक रूप से बाधाग्रस्त होने के कारण अनेक पुरूषों के लिए विवाह संबंध स्थापित करना सभव नहीं हो पाता। इनकी कामतृप्ति का एकमात्र स्थल वेश्यालय होता है। वेश्याएं तथा स्त्री व्यापार में संलग्न अनेक व्यक्ति भोली-भाली बालिकाओं की विषय आर्थिक स्थिति का लाभ उठाकर तथा सुखमय भविष्य का प्रलोभन देकर उन्हें इस व्यवसाय में प्रविष्ट कराते हैं। चरित्रहीन माता-पिता अथवा साथियों का संपर्कअश्लील साहित्यवासनात्मक मनोविनोद और चलचित्रों में कामोत्तेजक प्रसंगों का बाहुल्य आदि वेश्यावृत्ति के पोषक प्रमाणित होते हैं।
मनोवैज्ञानिक कारण
वेश्यावृत्ति का एक प्रमुख आधार मनोवैज्ञानिक है। कतिपय स्त्री पुरूषों में कामकाज प्रवृत्ति इतनी प्रबल होती है कि इसकी तृप्तिमात्र वैवाहिक संबंध द्वारा संभव नहीं होती। उनकी कामवासना की स्वतंत्र प्रवृत्ति उन्मुक्त यौन संबंध द्वारा पुष्ट होती है। विवाहित पुरूषों के वेश्यागमन तथा विवाहित स्त्रियों के विवाहेत्तर संबंध में यही प्रवृत्ति क्रियाशील रहती है।
इस सब कारणों से महिलाएं वेश्यावृत्ति को अपनाने पर मजबूर हो जाती हैं या समाज द्वारा मजबूर कर दी जाती हैं। वैसे समाज में इस वृत्ति को रोकने के लिए 1956 में वेश्यावृत्ति कानून बना। परंतु यह कानून वेश्यावृत्ति को मिटाने का प्रयास नहीं करताबल्कि सिर्फ चकलाघर चलाने या उसके लिए घर किराए पर देने या वेश्या के लिए दलाली करने को जुर्म की संज्ञा दे देता है। फलस्वरूपयह कानून न तो स्वेच्छा से या अकेले वेश्यावृत्ति करने पर कोई पाबंदी लगा पाता था और न ही इस व्यापार की जड़ यानी खरीददार पर। इस कानून के एवज में देखा जाए तो मुंबई ‘‘पुलिस के निगरानी प्रकोष्ठ शाखा के रिर्कार्ड के अनुसार पिछले छह वर्षों में 469 वेश्यालयों के मालिक पकड़े गएपर उनमें से कुल दो दंडित हुए। इनमें से एक भी दलाल या गृहस्वामी नहीं था। दूसरी तरफ इसी अरसे में 4,139 वेश्याएं वेश्यावृत्ति निरोधक कानून (सीता) के खंड 8(बी) के अंतर्गत और 44,663 बंबई पुलिस कानून के खंड 110 के अंतर्गत पकड़ी गई।’’17 इनमें से हर एक को दंडित किया गया। भारत में वेश्यावृत्ति या देहव्यापार अभी भी अनैतिक देहव्यापार कानून के तहत आते हैं। हालांकि देश में समय-समय पर इस बात को लेकर उच्चस्तरीय बहसें चलती रहीं हैं कि क्यों न वेश्यावृत्ति को कानूनन वैध बना दिया जाए। यानी यह कानून व्यर्थ रहायह स्वीकार करने के बाद उसकी व्यर्थता के कारणों को जांचने के बजाय इस पूरे धंधे से दंड व्यवस्था अपनी जिम्मेदारी ही समेट लेराज्य व्यवस्था स्त्रियों के हिंसक उत्पीड़नशोषण और खरीदे बेचे जाने की पाशविक परंपरा को अपनी मूक असहाय सहमति दे दे?
वैसे इस वृत्ति के परिपे्रक्ष्य में देखा जाए तो भारत में सेक्स व्यवसाय या इससे जुड़ी प्रत्यक्ष गतिविधियां प्रतिबंधित है और इसे भारतीय कानून के तहत अपराध माना गया है। ‘‘इम्मोरल ट्रैफिक सप्रेशन एक्ट (सीटा) 1956 के तहत भारत में देह व्यापार अपराध है। सीटा कानून में 1986 में संशोधन करके इसे इम्मोरल ट्रेफिक प्रिवेंशन एक्ट (पीटा) नाम दिया गया। इसके अंतर्गत देह व्यापार का प्रचार करना भी अपराध है। किसी भी तरह की सेक्स सर्विस का विज्ञापन या फोन नंबर किसी भी माध्यम से प्रेषित करना गैरकानूनी है।’’18 इसके साथ ही साथ किसी भी सार्वजनिक क्षेत्र में वेश्यालय नहीं चलाया जा सकता। इसी तरह से मसाज क्लबों या हेल्स स्पा के नाम से की जा रही अनैतिक गतिविधियां या संगठित देह व्यापार अपराध है। लेकिन इसके लिए लगाई जाने वाली कानूनी धाराओं में कई लूप होल हैं और अधिकतर धाराएं जमानती है। परंतु सामाजिक रूप से इस विषय को देखा जाए तो सभ्य समाज में अवैध व्यापार और वेश्यावृत्ति किसी प्रकार से स्वीकार्य नहीं है। पर फिर भी देश में सेक्स वर्कर और वेश्यावृत्ति का बाजार बढ़ा है। इस समस्या का कोई हल हो सकता है क्या? ‘वेश्यावृत्ति के मामले का जब कभी खुलासा होता है तो सामाजिक दबाव के चलते पारिवारिक लोग अपने बच्चे को स्वीकार नहीं करते हैं।19 ऐसी समस्या को मात्र कानून से नहीं बल्कि सामाजिक ढाचे के अनुसार स्वीकार करना होगा।

Sunday, June 10, 2012

जल्द ही एक और कत्ल


जल्द ही एक और कत्ल

हां कातिल हूंमैं
जब से होश संभाला जब से ही
कभी उम्मीदों का
कभी भावनाओं का
कभी दोस्ती का
तो कभी प्यार का
कत्ल ही कियामैंने
नहीं जानता
ऐसा क्यों और कैसे हुआ?
खोज कियाशोध भी किया
फिर भी नहीं जान पाया
अब इतना दूर निकल आया हूं
कि सोचना का वक्त कहां
हां वक्त पहले कहां थामेरे पास
मैंही वक्त के पीछे भागता रहा
और कत्ल करता रहा
अपनी खुशियों का
भावनाओं का
दोस्ती का
प्यार का
अब मैंअकेला हो गया हूं
इस वक्त की मार से
अब तो बस एक कत्ल और बाकी है
इस वक्त का
जिसने मुझसे सब कुछ छीन लिया
करूंगाइसका भी कत्ल करूंगा
वक्त आने पर?????


Saturday, June 2, 2012

देवी कम ‘श्रीदेवी’ ज्‍यादा लगती हैं



देवी कम 
श्रीदेवी’ ज्‍यादा लगती हैं



बहुत ही अजीब हालात हैं इस देश के। एक बाबा से निजात मिलती नहीं की दूसरा पैदा हो जाता है। लूटने के लिए। हां मैं बात  कर रहा हूं, अभी पैदा नहीं हुई परंतु मीडिया द्वारा पैदा की गई एक देवी श्रधेय श्री राधे मां की। जो देवी कम श्रीदेवी’ ज्‍यादा लगती हैं.। इनके भक्‍तों का कहना है कि यह चमत्‍कारी देवी है। इनके दर्शन मात्र से लोगों का उद्धार हो जाता है।
वैस अभी वक्‍त है लोगों को संभलने कानहीं तो यह भी निर्मल बाबा की तरह लोगों को करोड़ों का चूना लगा चुकी होगी। क्‍योंकि हमारा मीडिया किसी को जमीन से शिखर तक तथा किसी को भी शिखर से जमीन तक ला सकने में अहम भूमिका निभा सकता है। जैसा हाल ही में 1 जून से केवल नाम में परिव‍र्तित चैनल इनकी महिमा मंडन कर रहा है। शायद इस तथाकथित चमत्‍कारी देवी द्वारा कुछ माया के दर्शन इस चैनल को हो गये होंगे। हालांकि अभी एक मीडिया चैनल द्वारा इनके चमत्‍कारों को दिखाने का काम जोर-शोर से चल रहा है जैसे ही इस देवी की कृपा दूसरे मीडिया संस्‍थानों को हो जायेगी वैसे ही अन्‍य चैनलों पर भी यह प्रकट हो जायेंगी।  
इस परिप्रेक्ष्‍य में कहा जाये तो अभी वक्‍त है चेतने का। और इन ढ़ोंगी पाखंडी बाबाओं से और इस तरह की तथाकथित देवियों से, अपने देश को बचाने का। मुझें एक बात अभी भी समझ में नहीं आती कि क्‍या नेता कम पड़ गए थे इस देश को लूटने के लिएजो अब दिन प्रतिदिन कुकुरमुत्‍तों की तरह धर्म के नाम लूटने के लिए पैदा होने लगे हैं।
हालांकि अभी कुछ दिनों पूर्व मीडिया की सुर्खियों में बने रहने वाले बाबा यानि निर्मल बाबा को कोर्ट से गिरफतारी का वारंट आ चुका है। वहीं सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने सभी मीडिया चैनलों को यह आदेश दिए हैं कि इस बाबा के जितने भी प्रचार-प्रसार जिन चैनलों पर हो रहे हैं उनको तात्‍कालिक प्रभाव से पूर्णरूप से रोक दें। यही काम इस देवी के साथ भी होना चाहिए। जागो इंडिया जागो। 

Sunday, May 27, 2012

लोगों को ठगने/फर्जीवाड़ा का एक नया रूप


लोगों को ठगने/फर्जीवाड़ा का एक नया रूप

क्‍या यह बेरोजगारों को ठगने का नया तरीका तो नहीं या इसमें वास्‍तव में सच्‍चाई है। यदि सच्‍चाई है तो 15800 रूपये की ये मारूती सुजुकी कंपनी क्‍यों मांग कर रही है। ऐसा तो नहीं कि जो व्‍यक्ति 15800 रूपये जमा करें और फिर और फर्जी कंपनियों की तरह ये भी इन बेरोजगारों को चुना लगाकर चपत हो जाए। जैसा अधिकांश होता है और प्रतिभागी अपने आपको लुटा पिटा महसूस करने के अलावा इनके पास और कोई चारा न बचें। 
वैसे सचेत हो जाए फर्जी मेल और फर्जी जॉब से, क्‍योंकि यह आपको आर्थिक एवं मानसिक नुकसान पहंचा सकते हैं। यदि आपके पास कोई जॉब संबंधित मेल आये तो पहले उस कंपनी के बारे में पूरी जानकारी कर ले तभी कोई अलग कदम उठायें, नहीं तो यह सुरक्षा राशि के नाम पर आपसे मोटी रकम ऐंठ सकते हैं। और कुछ दिनों के बाद लापता। जिसे हम आप तो क्‍या ये पुलिस वाले भी नहीं पकड़ सकते।
जागों इंडिया जागों

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Vasant Kunj, New Delhi-110070 
Board no.46781000
Email: [HR@marutisuzukijobs.com]
Tel : +918586064016 (10:00 AM TO 5:30 PM)
REF: "MARUTI SUZUKI" DIRECT RECRUITMENTS OFFER.
It is our good pleasure to inform you that your Resume has been selected 
from NAUKRI.COM for our new plant. The Company selected 62 candidates 
list for Senior Engineer, IT, Administration, Production, marketing and 
general service Departments, as well as Company offered you to join as an 
Executive/Manager post in respective department. You are selected 
according to your resume in which Project you have worked on according to 
that you have been selected in Company. The SUZUKI Company is the best 
Manufacturing Car Company in India; The Company is recruiting the 
candidates for our new plant in Pune, Bangalore, hyd and Mumbai.
Your Appointment interview Process will be held at Company HR - office in 
Nelson Mandela Road, Vasant Kunj Delhi – from 2nd of june 2012.
You will be pleased to know that Company has advise you in the selection 
panel that your Application can be progress to final stage. You will come to Company HR office in Delhi. Your offer letter with Air Ticket will be send to 
you by courier before date of interview. The Company can be offering you as 
salary with benefits for this post 50,000/- to 4, 00,000/- P.M. + (HRA + D.A + 
Conveyance and other Company benefits. The designation and Job Location 
will be fixing by Company HRD at time of final process. You have to come with 
photo-copies of all required documents.
REQUIRED DOCUMENTS BY THE COMPANY HRD. 
1) Photo-copies of Qualification Documents.
2) Photo-copies of Experience Certificates (If any)
3) Two Passport Size Photograph
You are to make a REFUNDABLE cash security deposit of Rs.15, 800/-(Fifteen 
Thousand Eight Hundred Rupees) as an initial amount in favor of our company 
Senior hrd accountant name in charge of collecting payment. This payment 
covers Registration, Interview, insurance, Processing & Maintenance 
charges. The refundable interview security deposit of Rs. 15,800/- should by 
paid through any [STATE BANK OF INDIA] Branch closer to you to our 
company hrd accounting officer in charge. Account information will be 
provided to you upon reply to email.
REASONS FOR INTERVIEW SECURITY DEPOSIT: This is a measure we have 
taken to check bogus applications from unserious candidate who applies for 
job and we send them offer letter and air ticket and also make the above 
mentioned arrangements in other to give them a comfortable interview and 
they fail to appear for interview which is a huge loss to the company and the 
interview becomes shabby and hence we fail to recruit the needed manpower. 
But with your security deposit we will be assured that our expenses will not 
be wasted. 
Please do comply with us as your refundable security deposit will be 
returned to you in cash immediately after the interview is over at the very 
premises of the interview.
NB: You are advised to reconfirm your mailing address and phone number in 
your reply and also send scanned copy of payment receipt after deposit . This 
Company will be responsible for all other expenditure to you at the time of 
face-to-face meeting with you in the Company. The Job profile, salary offer, and date -time of interview will be mentioned in 
your offer letter. 
IMPORTANT NOTICE:
Last date for security deposit is 1st
june 2012. The earlier the deposit is made 
the earlier your position will be secured by the Company HRD -direct 
recruitment manager.
Regards,
Mr. Aiko Hiroko
TEL: +918586064016
Email: [HR@marutisuzukijobs.com]
HRD -direct recruitment office
MARUTI SUZUKI INDIA LTD (MSIL)

Monday, May 21, 2012

विज्ञान और नीतिशास्त्र


विज्ञान और नीतिशास्त्र
सामान्यतः यह माना जाता है कि विज्ञान और नीतिशास्त्र शाब्दिक विरोध व्यक्त करता है। इसके बावजूद विज्ञान और नीतिशास्त्र के बीच मध्यममार्ग ज्ञात करना कठिन प्रतीत होता है क्योंकि इनके क्षेत्र भिन्न हैं और ये स्पष्ट रूप से एक दूसरे के निवारक हैं। किंतु काफी निकट से अवलोकन करने पर हम देखेंगे कि समान्य मत के विपरीत और नीतिशास्त्र न तो दो भिन्न ध्रुव हैं और न ही ये एक दूसरे के विरोधी और ये एक दूसरे को बल प्रदान करते हैं।
यदि विज्ञान को नीतिशास्त्र से पृथक कर दिया जाए तो, तो यह पूर्णरूपेण हिंसोन्मत्त हो सकता है और सर्वत्र भयंकर विध्वंस का कारण बन सकता है। इसलिए, विज्ञान को धर्म या नीतिशास्त्र द्वारा उचित रूप से सौम्य बनाना जरूरी है और नीतिशास्त्र को विज्ञान का ध्यान रखना जरूरी है। यदि विज्ञान हमारी भौतिकवादी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, तो नीतिशास्त्र हमारी आध्यात्मिक क्षुधा की तृप्ति करता है। नीतिशास्त्र परम सत्य को खोजने का प्रयास करता है। यह सच्चाई, भलाई, संदुरता और भक्ति जैसे मूल्यों के परम लक्ष्यों की प्रकृति और जीवन की कटु सच्चाईयों के साथ उनके संबंधों की जांच करता है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आश्चर्यजनक विकास करने वाले पश्चिमी देश अब निराश होकर पूर्व के आध्यात्मिक संदेश में राहत ढूंढ़ने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने पाया है कि नीतिशास्त्र के बिना विज्ञान का कोई खास महत्व नहीं है। यह हमें चंद्रमा पर ले जा सकता है किंतु यह हमें दिल की गहराइयों में नहीं ले जा सकता है। यह मनुष्य की भावनात्मक क्षुधा को तृप्त करने में असफल है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि ये हमारी आध्यात्मिक विरासत और धार्मिक सत्ता में प्रकाश की संभावना की तलाश करते है।
अब सभी बुद्धिजीवी और विचारक यह समझते है कि केवल विज्ञान हमारे जीवन को बेहतर बनाने में असमर्थ है। यद्यपि विज्ञान ने हमारे कल्याण के लिए सैकड़ों अन्वेषण एवं खोज दिए हैं तो दूसरी तरफ विध्वंस के विभिन्न् साधनों के जरिए मानवजाति के लिए भयंकर विपत्ति भी ला दी है। इसलिए यदि विज्ञान द्वारा कुछ उपयोगी उद्देश्यों की पूर्ति करनी है और मानवजाति के लिए वास्तविक खुशी लानी है तो इसे धर्म से जोड़ना चाहिए। इसी प्रकार यदि धर्म को मानवजाति का वास्तविक परामर्शदाता बनना है तो इसे सभी अंधविश्वासों से छुटकारा पाना होगा और वैज्ञानिक आधार प्राप्त करने चाहिए। जीवन का कटु सत्य है कि नीतिशास्त्र के बिना विज्ञान अंधा है और विज्ञान के बिना नीतिशास्त्र पंगु है। नीतिशास्त्र को मात्र धर्मसिद्धांत तक ही सीमित नहीं किया जा सकता है। इसी तरह, विज्ञान को भी बेलगाम और मानवजाति का विध्वंस नहीं बनने देना चाहिए।
मध्य काल के प्रारंभ में गिरजाघर और वैज्ञानिक अन्वेषण के बीच प्रतिस्पर्धा का विकास हुआ। धर्म की परंपरागत उपलब्धि को अस्त-व्यस्त करने वाले या लोकप्रिय धार्मिक सिद्धांतों में दोष ढूंढ़ने वाले अन्वेषण या खोच को ईसाई विरोधी और ईश्वर विरोधी कहा गया। गैलीलियों को दोषी करार दिया गया था और मुकदमा चलाया गया था और उनके वैज्ञानिक खोजों को त्या दिया गया क्योंकि ये खोज परंपरागत धार्मिक मतों से मेल नहीं खाते थे। उस समय के कोई भी वैज्ञानिक, प्रवर्तक और धार्मिक सिद्धांतों के आलोचक गिरजाघर की धर्महठता से नहीं बचते थे। यदि गिरजाघर की बात गलत भी होती थी तो उनके लिए अन्वेषकों को दोषी करार दिया जाता था। इस तरह, अंधकार युग के दौरान नीतिशास्त्र और विज्ञान युद्ध की स्थिति में रहा, जो सचमुच दुर्भाग्यपूर्ण था। किंतु अब स्थिति बदल गई है।
धर्म का अर्थ धर्मांधता या मतांधता, धर्म सिद्धांत या गलत मत नहीं है। इसका अर्थ मानवजाति से प्रेम और उनकी सेवा के प्रति समर्पित जीवन तथा गरीबों एवं पीड़ितों के लिए मानवता, सहिष्णुता, संदेवना और सहानुभूति है। धर्म का अभिप्राय सत्य के लिए निरंतर खोज है। इसका  अभिप्राय अंधकार के विरूद्ध प्रकाश है। यह हमें अंधकार से प्रकाश, असत्य से सत्य, घृणा से प्रेम और पाप से धर्मपरायणता की ओर ले जाता है। इसका अंतिम लक्ष्य सार्वभौमिक प्रेम और खुशी है। विज्ञान का भी लक्ष्य मानव कल्याण है इसने मानव की सुविधा और आधुनिक सत्यता में इतना योगदान दिया है कि इसे नया ईश्वर के रूप में माना जाने लगा है। विज्ञान ने दूरसंचार क्रांति के जरिए विश्व में ईश्वर के रूप वचन को फैलाने में मानव को आश्चर्यजनक रूप से सहायता प्रदान की है।
परिभाषा के अनुसार, विज्ञान ज्ञान का क्रमबद्ध निकाय है। किंतु सभी ज्ञान ईश्वर का ज्ञान है। हमारी यात्रा ईश्वर से ईश्वर तक है। धर्म का लक्ष्य आध्यात्मिक उपस्थिति के रूप में इसकी प्राप्ति है।
भौतिकवाद यंत्रवाद की वकालत करता है। यह जीवन एवं मस्तिष्क की सच्चाईयों और अनोखेपन को मानने से इंकार करता है। यह ईश्वर के अस्तित्व को इंकार करता है। यह इस बात को भी नकारता है कि सजीव रूप में संपूर्ण प्रकृति की रचना है तथा मानव या पशु के सजीवों के रूप में कार्य करने पर इसे आपत्ति है। किंतु विज्ञान ने इस दूरी को समाप्त कर दिया है और इस प्रकार मानवजाति का एकीकरण हुआ है। इस प्रक्रिया में विश्व एकसाथ बंध गया है। विज्ञान ने प्राकृतिक बाधाओं को तोड़ दिया है और धर्म ने आध्यात्मिक खाई को पाट दिया है। यदि विज्ञान और नीतिशास्त्र साथ मिलकर काम करें तो पृथ्वी पर स्वर्ग बनाने का ईश्वर का सपना वास्तविकता में बदल जाएगा।
मनवजाति के  लिए सर्वत्र शांति और समृद्धि होगी। विध्वंस की ओर विज्ञान के वर्तमान कदम को केवल धर्म और नैतिकता द्वारा विज्ञान को स्वस्थकर स्पर्श प्रदान कर रोका जा सकता है। विज्ञान को धर्म द्वारा ही विध्वंस के मार्ग से दूर किया जा सकता है। एक तरफ, समय की आवश्यकता है कि धर्म को मात्र कर्मकांड, निरर्थक धर्महठता, बेकार कर्मकांडों और आडंबरपूर्ण समारोहों से छुटकारा पाना चाहिए और दूसरी तरफ, विज्ञान को विध्वंसात्मक उद्देश्यों के लिए अपनी खोजों के प्रयोग से बचना चाहिए। न तो अवैज्ञानिक अंधविश्वासी पर आधारित धर्म और न ही निरीश्व और अर्चेतन्य अपवित्र विज्ञान समुपस्थित शारीरिक एवं नैतिक विपदाओं से मानवता की रक्षा कर सकता है।
इसलिए, हमें उस विश्व समुदाय के विकास के लिए काम करना चाहिए जिसमें युद्ध वर्णित होगा और हिंसा एक अस्वीकृत मत होगा। आध्यात्मिक पुनर्निर्माण के अतिरिक्त कुछ भी हमें इस उद्देश्य की प्राप्ति में सहायता नही कर सकता है।