Monday, July 25, 2011

आजाद हैं, जी रहे गुलामों की जिंदगी

स्‍वतंत्र है हम, स्‍वतंत्र. सोच रहा हूं कैसी आजादी है. कि आजाद होने के बावजूद भी आजाद महसूस नहीं कर पाते. तरह-तरह की बंदिशों की जंजीरों की जकड़न का एहसाह होता है. और कहे जाते है स्‍वतंत्र.
आजादी से पूर्व अंग्रेजों ने हम पर फूट डालकर खूब राज किया.अपनी सुविधा के अनुसार कानून का निर्माण कर हम पर थोप दिया गया.इन कानून की आड़ में अंग्रेजों ने अत्‍याचारों की बाढ़ लगा दी.इन अत्‍याचारों का एहसास आज की युवा पीढी को नहीं है.आजाद भारत की चाह लिए और अपनों को आजाद भारत का तोहफा देने के लिए युवा से लेकर बुर्जुगों ने अपनी जान पर खेलकर,अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर विवश कर दिया,और भारत को आजादी नसीब हुई.जिसका जश्‍न हम हर साल १५ अगस्‍त के दिन मना लेते है और भारत को आजाद कराने में हुए उन वीर मां के शहीद पुत्रों को याद कर लेते है जिनकी बदौलत हमें आजाद भारत के दर्शन हो सके.
भारत आजाद तो ६४ साल पहले हो गया था परंतु स्‍वतंत्र आज भी नहीं हुआ. पहले अंग्रेज हम पर राज करते थे अब नेता हम पर राज करते हैं.पहले अंग्रेज अत्‍याचार करते थे अब नेता करने के साथ-साथ करवाते भी हैं.जिस तरह के नियम अंग्रेजों ने अपनी सुविधानुसार बनाये थे उन्‍हीं नियमों व कानून को आजाद भारत ढो रहा है.विधायिका, कार्यपालिका या फिर न्‍यायपालिका,सभी में अंग्रेजी हुकूमत की बू आती है.अंग्रेजों के कार्यकाल में भी गरीब जनता व महिलाओं के साथ अत्‍याचार व उत्‍पीड़न किया जाता था आज भी हो रहा है. पहले अंग्रेज करते थे आज नेता कर रहे हैं बदला क्‍या है. कभी-कभी अपनी जुबान को भी गंदा करना पडता है और वेबक ही कुछ-न-कुछ निकल ही आता है इन नेताओं की शान में. अगर हम इन नेताओं को अंग्रेजों की औलाद कहें तो गाली नहीं होगी.क्‍योंकि इनके कर्मों से ऐसा ही लगता है कि ये अंग्रेजों के वंशज है.मेरे एक मित्र का कहना है कि बच्‍चे घर का आईना होते है जिनसे परिवार की तस्‍वीर साफ दिखाई देती है. जैसे संस्‍कार माता-पिता में होते है ठीक वैसे ही संस्‍कार उनके बच्‍चों में दिखाई दे ही जाते हैं.
आजादी के बाद बने संविधान की बात करें तो मानव होने के नाते सभी मनुष्‍य को मूल अधिकारों के रूप में समता, स्‍वातंत्रय, शोषण के विरूद्ध, धर्मकी स्‍वतंत्रता एवं संस्‍कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार दिये गये हैं. जिनका दोहन किसी भी व्‍यक्ति या राज्‍य द्वारा नहीं किया जा सकता. बावजूद इसके मानव अधिकारों का दोहन इन नेताओं द्वारा, कानून की नाक के नीचे हमेसा से किया जा रहा है.इन नेताओं के गिरेवान तक कानून के लंबे हाथ भी नहीं पहुंच पाते, इसका मूल कारण कानून की रक्षा का दायित्‍व जिनके कंधों पर है उनका सहयोग मिलना.यहां एक फिल्‍म में कहीं गयी कुछ पंक्तियां याद आती है कि गुनाह करने का, करने का. परंतु पकड़े नहीं जाने का, पकड़ा गया तो गुनाहगार, नहीं तो साहूकार. ये नेता गुनाह पर गुनाह करते रहते हैं और पुलिस की मिली भगत होने के कारण पाक साफ बच जाते हैं.
जम्‍मू कश्‍मीर से लेकर कन्‍याकुमारी तक अत्‍याचारों की कतार लगी हुई है.भ्रष्‍टाचार तो अपने चरम पर पहुंच चुका है. भ्रष्‍टाचार के इस दीमक ने सभी को अपनी चपेट में ले लिया है. पेंशन से राशन तक, रोजगार से काम तक, हर जगह भ्रष्‍टाचार मचा हुआ है. छोटे से छोटा काम हो या बड़े से बड़ा. रिश्‍वत तो देनी ही पड़ती है. कोई कम खाता है कोई ज्‍यादा. अपना काम करवाना है तो खिलाना तो पड़ेगा ही. नहीं तो, आपका काम होगा इसकी भी उम्‍मीद अपने जेहन से निकाल दीजिए. ये आजाद भारत की तस्‍वीरें हैं. इससे अच्‍छा तो हम गुलाम ही रहते. हम अपने आप को गुलाम तो कह पाते. आजाद है गुलामी की जिंदगी जीने के लिए.
ऐसा चलता रहा तो आजादी का जश्‍न कुछ सालों का मेहमान बनकर न रह जाए,क्‍योंकि इन नेताओं की जमात देश की जड़ों को धीरे-धीरे खोखला बना रही है और अब भी लगे हुए है. जिस दिन ये जड़ें देश का भार उठाने के काबिल नहीं होगी उसी दिन कोई देश फिर से हमें अपना गुलाम बना लेगा.इसी फिराक में पाकिस्‍तान से लेकर चीन लगा हुआ है कि कब ये नेता अपने मतलब के लिए देश को गिरवी रखते है और हम देश पर अपनी हुकूमत.इन नेताओं की नीयत ठीक नहीं नजर आ रही है अपने स्‍वार्थ के चलते ये भारत को बेच भी सकते है. और हम मनाते रहे आजादी का जश्‍न. जागना होगा, हमें. आवाज उठानी होगी, एक होना होगा, और नेताओं के हाथों से देश की कमान छीननी पडे़गी, नहीं तो भारत देश को गुलाम होने से कोई नहीं बचा सकता.